Vishnu Bhagwan is the most prominent and revered God in the Hindu religion. According to the scriptures, Lord Vishnu is considered the most admired God because he maintains the balance of the entire universe. Many Hindu devotees want to get the attention of Lord Vishnu. So they must recite the Vishnu Bhagwaan Katha. Many people believe that, if any person recites the Vrat Katha and Aarti of Lord Vishnu they will receive many benefits. Especially, Vishnu Bhagwan Katha solving marriage-related problems.
Vishnu Bhagwan Ki Katha PDF
In the Hindu religion, a day of Thursday is reserved for the Lord Vishnu (भगवान विष्णु) and everyone worships them on this day. There are various benefits of Worshipping Vishnu Ji like solving marriage problems, and bringing happiness to the family. The best way to impress the Lord Vishnu Ji is by reciting Vishnu Puran and performing Aarti. If any person observes the fast, Vishnu Bhagwan Katha, Aarti, all kinds of problems in life are resolved.
Every Hindu Vrat (Fast) that falls throughout the week has a purpose. Lord Jupiter is happy when people observe the Bhagwan Vishnu ji fast, and ladies are also said to benefit from it. Brihaspati Dev is another name for Lord Vishnu (बृहस्पतिदेव). It is thought that Lord Vishnu always keeps the followers of this narrative (विष्णु जी की कथा) safe. Read and heard during the fast of Guruvar Vrat – Brihaspati – is the narrative of Vishnu ji. When someone worships Lord Vishnu ji sincerely and observes Vrat on Thursday, Lord Vishnu quickly grants all of their wishes.
विष्णु भगवान की कथा और आरती PDF Download – Overview
PDF Name | Vishnu Bhagwan Ki Katha PDF |
Katha | विष्णु भगवान की व्रत कथा, कहानी और आरती |
Best Day of Recite Katha and Aarti | Thursday |
Document Type | Pdf Format |
Pdf Size | 57Kb |
Total Pages | 1 to 2 |
Vishnu Bhagwan Ki Katha PDF | Click Here |
Category | Religious Text |
विष्णु भगवान आरती | Vishanu Bagawan ki Aarti
ॐ जय बृहस्पति देवा
ॐ जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा।
छिन-छिन भोग लगाऊं, कदली फल मेवा।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।तुम पूर्ण परमात्मा, तुम अंतर्यामी।
जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता।
सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े।
प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्वार खड़े।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी।
पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।सकल मनोरथ दायक, सब संशय तारो।
विषय विकार मिटाओ, संतन सुखकारी।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।जो कोई आरती तेरी प्रेम सहित गावे।
जेष्टानंद बंद सो-सो निश्चय पावे।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
विष्णु भगवान की कहानी – जब विष्णु ने शिव को मुश्किल से बाहर निकाला
यौगिक कथाओं में ऐसी कई कहानियाँ हैं, जिनमें बताया गया कि शिव की करुणा कोई भेदभाव नहीं करती और वे किसी की इच्छा पर बच्चों की तरह भोलापन दिखाते हैं। एक बार गजेंद्र नामक एक असुर था। गजेंद्र ने बहुत तप किया और शिव से यह वरदान पाया कि वह जब भी उन्हें पुकारेगा, शिव को आना होगा। त्रिलोकों के सदा शरारती ऋषि नारद ने देखा कि गजेंद्र हर छोटी-छोटी बात के लिए शिव को पुकार लेता था, तो उन्होंने गजेंद्र के साथ एक चाल चली।
उन्होंने गजेंद्र से कहा, ‘तुम शिव को बार-बार क्यों बुलाते हो? वह तुम्हारी हर पुकार पर आ जाते हैं। क्यों नहीं तुम उनसे कहते कि वह तुम्हारे अंदर आ जाएँ और वहीं रहें जिससे वह हमेशा तुम्हारे अंदर होंगे?’ गजेंद्र को यह बात अच्छी लगी और फिर उसने शिव की पूजा की। जब शिव उसके सामने प्रकट हुए, तो वह बोला, ‘आपको मेरे अंदर रहना होगा। आप कहीं मत जाइए।’ शिव अपने भोलेपन में एक लिंग के रूप में गजेंद्र में प्रवेश कर गए और वहाँ रहने लगे।
फिर जैसे-जैसे समय बीता, पूरा ब्रह्मांड शिव की कमी महसूस कर रहा था। कोई नहीं जानता था कि वह कहाँ हैं। सभी देव और गण शिव को खोजने लगे। काफी खोजने के बाद, जब कोई यह पता नहीं लगा पाया कि वह कहाँ हैं, तो वे हल ढूंढने के लिए विष्णु के पास गए। विष्णु ने स्थिति देखी और कहा, ‘वह गजेंद्र के अंदर हैं।’ फिर देवों ने उनसे पूछा कि वे शिव को गजेंद्र के अंदर से कैसे निकाल सकते हैं क्योंकि गजेंद्र शिव को अपने अंदर रखकर अमर हो गया था।
हमेशा की तरह विष्णु सही चाल लेकर आए। देवगण शिवभक्तों का रूप धरकर गजेंद्र के राज्य में आए और बहुत भक्ति के साथ शिव का स्तुतिगान करने लगे। शिव का महान भक्त होने के कारण गजेंद्र ने इन लोगों को अपने दरबार में आकर गाने और नाचने का न्यौता दिया। शिवभक्तों के वेश में देवों का यह दल आया और बहुत भावनाओं के साथ, बहुत भक्तिपूर्वक वे शिव के लिए भक्तिगीत गाने और नाचने लगे। शिव, जो गजेंद्र के अंदर बैठे हुए थे, अब खुद को रोक नहीं सकते थे, उन्हें जवाब देना ही था। तो वह गजेंद्र के टुकड़े-टुकड़े करके उससे बाहर आ गए।